बॉलीवुड गाने तो हम सभी की जान है। और फिर हमारे पास हर सिचुएशन के लिए गाने होते हैं। दिल टूट गया तो बॉलीवुड गाने सुन लो। दोस्त से झगड़ा हो जाए या रूठी गर्लफ्रेंड को मनाना हो। बस एक बॉलीवुड गाना बजाओ और सब ठीक हो जाता है। इन गानों के मतलब ही इतने अच्छे होते हैं। बस सीधे दिल पर लगते हैं। खासतौर पर तो पुराने 90's के गाने वो तो सच में एवरग्रीन हैं। उन गानों का तो कोई तोड़ ही नहीं है। लेकिन अगर इन बॉलीवुड गानों का मतलब बदल दिया जाए तो।
वैसे भी फिल्मों में गाने लिखे जाते हैं किसी सिचुएशन को हाईलाइट करने के लिए। लिखने वालों की यह मजबूरी होती है कि उन्हें गानों को राइम करना पड़ता है, जिसकी वजह से सही शब्द बदलने पड़ते हैं। अगर गाने की एक ही पंक्ति सुनी जाए या अगर गाने को सिनेमा के साथ न सुना जाए तो उसका मनोरंजक अर्थ निकाला जा सकता है।
यकीन ना हो तो लीजिए एक नमूना देखिए।
फिल्म 'लैला मजनू', आपको मालूम है कि उस जमाने में आशिक को पब्लिक पत्थर मारते हुए मौत दे देती थी। अगर ऐसा नहीं होता तो इस लाइन का दूसरा अर्थ निकाला जा सकता है। (पत्थर से ना मारो) जलती लकड़ी से मारो, I don't mind!
मरने-मारने की बात छोड़ें, प्यार की बात करें।
"मैं तेरा बॉयफ्रेंड तू मेरी गर्लफ्रेंड ओह मेनू कहन्दी ना ना ना ना…।"
पुराने गाने 'तुमको मुझसे प्यार है' में 'न, न, न, न' का बेहतरीन इस्तेमाल किया गया था पर इस गाने में बॉयफ्रेंड को 'ना, ना, ना ,ना' कहकर हमारे जाल में फंसने की क्या जरूरत थी।
अगर हमने उनसे पूछा- 'अरे, अपनी पोती की उम्र की लड़की से इश्क फरमाते ही क्यों हो।
तो भला क्या जवाब दे पाएंगे वो।
देखा जाए तो किसी बूढ़े की शादी एक टीनएजर से होना आज के समाज में संभव है। वैसे भी कहते हैं कि सिनेमा समाज का दर्पण होता है। और दर्पण में समाज के काले चेहरे भी दिखते हैं। जैसे हमारे मध्य प्रदेश का बड़ा घोटाला व्यापम।
अब यह अज़ीब दास्ताँ भी सुन लीजिए।
"अजीब दास्ताँ है ये, कहाँ शुरू कहाँ ख़तम…।"
'तारें जुड़ें कइयों से, इसलिए कहें व्यापम'।
कई सालों से इसके बारे में सुना-पढ़ा जा रहा है। इससे जुड़े कई व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु के बारे में कहा-सुना गया है, लेकिन शायद अभी भी जाँच करने वाली एजेंसीज को कोई छोर नहीं मिल रहा है।
इससे हम नौसिखियों को अपनी अगली लाइन जोड़ने का मौका मिल जाता है -'तारें जुड़ें कइयों से, इसलिए कहें व्यापम'।
कैसा संयोग है,हम दर्पण की बात कर ही रहे थे कि इन सज्जन को दर्पण ने अपनी (असंभव) डिमांड दे डाली।
"आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे.."
इन 'डैडी' की मुश्किल यह है कि उनके बुढ़ापे का फायदा उठाकर उनकी बेगम उन्हें रिजेक्ट कर रहीं है। आप ये मत पूछिए कि बेगम भी तो साथ साथ बूढी हुई होगी। अरे बरखुरदार, औरतों की उम्र भला एक वांछित मुकाम पर पहुँच कर कभी बढ़ी है।
तो अगली पंक्ति हम जोड़ते हैं -
मेरी बीबी अब मुझसे फ़ौरन रुखसत मांगे।
खुदा इस बेगम को सदबुद्धि दे और बुढ़ापे में ये इंसान बेआसरा न हो। वैसे खुदा है यह हम प्रूव कर सकते हैं, हमारे आसपास की खुदाई से। विश्वास नहीं करते तो हमारी कॉलोनी में आपका स्वागत है।
" तू न जाने आस-पास है खुदा...।"
'टू व्हीलर संभालकर चलाए बंदा'
स्थिति को देखकर दूसरा गाना याद आता है-
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम,
ऐसी हो हमारी ड्राइविंग,
पाइप और गड्ढे से बचें,
ताकि कंटीन्यू हो हमारी लिविंग,
और हम गाना आगे बढ़ाते हैं
'टू व्हीलर संभालकर चलाए बंदा'।
"तेरे पास आ के मेरा वक़्त गुजर जाता है।"
क्या उसको टाइम-पास मूंगफली समझते हो।
खुदा ने खुदाई बनायीं और हमें प्यार को तोहफा दिया। ठीक है। पर श्रीमान यह बताइये कि क्या 'तेरे पास आ के मेरा वक़्त गुज़र जाता है…' मेहबूब की तारीफ़ है। यह भी कोई बात हुई। क्या उसको टाइम-पास मूंगफली समझा जा रहा है।
भई, यह कह सकते थे कि
'तेरे पास आ के मेरी ज़िन्दगी सँवर जाती है' या
'तेरे पास आ के वक़्त का पता ही नहीं चलता है' या
'तेरे पास आ के मेरी साँसे बहक जाती है' इत्यादि।
पर ऐसा कुछ नहीं कहा और हमें कहने को मिला-
क्या उसको टाइम-पास मूंगफली समझते हो।
लेकिन सभी लोग अपना टाइम पास नहीं करते। ये काले कोट वाले लाखों मुकदमों के नीचे दबे हुए हैं पर उनका ज़मीर आज भी ज़िंदा है। तभी राम रहीम को बलात्कार का दोषी घोषित करते हुए उनकी ज़बान लड़खड़ाती है।
"बस इतना सा ख्वाब है...।"
कि सजा सुनते हुए हम जजों को अधिकार होना चाहिए कि वे अभियुक्त का नाम बदल सकें। अब राम रहीम को बलात्कार के लिए सजा देते हुए बहुत बुरा लगता है।
सही है, एक भगवान के नाम पर सजा सुनाते हुए कष्ट होता होगा और यहाँ तो दो हैं। और ये दोनों भी विभिन्न धर्मों के जो आपस में सदियों से सौहाद्र नहीं रखते।
इस पर वोटिंग करायी जाए और बहुमत कहे तो न्यायधीशों को ऐसा अधिकार दिया जाए कि वे संवेदनशील नाम बदल सकें।
"जाने कहां गए वो दिन...।"
अच्छे दिनों की तलाश में कॉमन मैन।
जब न्यायाधीश अपना काम कर रहे हैं, जब इन सज्जन ने अपना काम ईमानदारी से किया होगा, जब देश के शीर्ष व्यक्ति ने आश्वासन दिया है, तो अच्छे दिन 'मिस्टर इंडिया' कैसे बन गए- ग़ायब कैसे हो गये।
कैसा विरोधाभास है- इंडिया के मिस्टर के दिन अच्छे होने थे पर अच्छे दिन मिस्टर इंडिया हो गए।
" कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है..."
अरे बाबा, दिल की जगह दिमाग से सोचते तो ये हाल क्यों होता।
शायद अच्छे दिन इसलिए नहीं आये कि हम दिल से सोचते हैं, दिमाग से नहीं। अब इन्हें ही देखिए। अगर मेहबूबा से अलग होने का निर्णय दिमाग से लिया था तो अब उसको किसी और की पत्नी के रूप में देखने से दिल में खलबली क्यों हो रही है।
इस दिल और दिमाग की जद्दोजहद से याद आया कि हम एक सुझाव जल्दी ही देने वाले हैं कि सिक्के के एक और दिल बना हो, दूसरी और दिमाग (परंपरागत हेड और टेल नहीं) और उलझन होने पर सिक्का उछाल के निर्णय लिया जाए । आखिर 'शोले' के समान सिक्का खड़ा तो नहीं गिरेगा।
दिल और दिमाग की बात हो रही है। शायद, गीतकारों ने दिल से लिखे हैं। गाने जिनका हम दिमाग से पोस्ट मार्टम कर रहे हैं। अब एक रिवर्स स्वीप खेलते हैं। यहाँ यात्री का दिल ढेरों परेशानियों से घबराया हुआ है और ड्राइवर साहब उन्हें अपने दिमाग से एक मशहूर गाने की पंक्ति सुना रहे हैं।
"राही मनवा दुःख की चिंता क्यों सताती है,
दुःख तो अपना साथी है"।
ड्राइवर भैय्या, इतने पैसेंजर बिठा रखे हैं, रोड गड्ढों से भरा है,
कम-से-कम इतनी तेज और रैश तो न चलाओ, तकलीफ होती है।
" घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं..."
पिछली बार जब ये गाना बजा था तो बच्चों ने पूछा था what is ghunghru ? मुझे अभी आइडिया आया कि नए स्मार्ट फोन मॉडल का नाम क्लाइंट को घुँघरू क्यों न सजेस्ट करूँ। यही गाना प्रोडक्ट के लिए चल जाएगा। हम बूढ़े लोगों को पुराने गाने ही आते हैं। शायद नए गाने वैसे भी नाशवान होते हैं। अब नयी पीढ़ी को पुरानी बहुत सारी चीजें मालूम नहीं हैं। इसका (घुंघरू का) फायदा यह स्मार्ट कॉपीराइटर मैडम लेना चाहे तो उसमे बुरा क्या है।
"ओ ओ ओ ओ हाय रे तेरी मासूमियत ने हमें बंजारा बना दिया...।"
वही नयी पीढ़ी का अज्ञान! अनजान शब्द घुंघरू कभी 'पग' के कॉम्बिनेशन में जोरदार तरीके से आया था, पर जब बच्चे ने अमिताभ को 'पग घुंघरू बाँध राधा नाची रे' पर थिरकते देखा ही नहीं और उसे 'पग' मतलब क्यूट पप ही मालूम है तो उसका यह निष्कर्ष निकालना लाजमी है।
वक़्त के साथ बहुत सी चीजें और शब्द विलुप्तप्राय होने ही वाले हैं। हम जल्दी-जल्दी इन्हें इस्तेमाल कर लें।
" मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूंगा सदा...।"
पहाड़ी रास्तों पर एक ड्राइवर की गुहार
कॉम्बिनेशन की बात चल रही है तो एक दुर्गम कॉम्बिनेशन, लम्बी दूरी की ड्राइविंग और पहाड़ याद आते हैं। पहाड़ी रास्तों पर गाड़ी को साइड मिलना आसान नहीं होता।
क्या करे बिचारा ड्राइवर बजाय इस गाने को गुनगुनाने के।
"पन्ना की तमन्ना है कि हीरा मुझे मिल जाए ...।"
पैसों की फ़िक्र थी तो 'पन्ना' नाम की महिला से क्यों शादी की।
अब उस अभागे ड्राइवर को साइड मिली या नहीं इस मैडम को उससे कोई वास्ता नहीं है। उसे तो बस हीरा मंगता है। शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है। हम असहमत हैं। जब ऐसा गाना मौजूद था तो इस कंजूस आदमी ने भला 'पन्ना' नाम की महिला से क्यों शादी की।
चलिए, अंत भी एक बॉलीवुड गाने से करते हैं-
"सब का भला हो,सब का सही हो।"
यह स्टोरी रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल प्रमोद देवगिरीकर, इंदौर ने लिखी है।